बाबा साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व को नमन

*बाबा साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व को नमन*
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आज सम्पूर्ण विश्व कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ भारतीय संविधान के प्रणेता  विश्व के महानतम विद्वान डॉ० भीमराव अंबेडकर जी की जन्मतिथि पर छद्म मानसिकता के लोग भोंड़ी राजनीति करने को आतुर हैं। अम्बेडकर जी जिस भारतीय संविधान के शिल्पी थे; उनके इस महान कार्य को कमतर आँकने का लोगों द्वारा असफ़ल प्रयास जारी है। ये बार-बार प्रश्न किये जाते हैं कि संविधान यदि बाबा साहब ने लिखा तो अन्य सदस्यों की क्या प्रासंगिकता थी? क्या वे सब संविधान लेखन/प्रणयन के प्रति अकर्मण्य थे? ऐसे अनेको-अनेक प्रश्न वो करते हैं जो अपने विचारों को, अपनी मातृभाषा में शुद्धरूप में लिख तक नहीं पाते!  यदि वे इतिहास के पन्नों को पलट कर पढ़ते तो शायद ऐसा न कहते।
    बाबा साहब पर प्रश्न चिह्न उठाने वाले लोग संविधान निर्माण के सन्दर्भ ज्ञानावगाहन करें--
  *जिस तरह की मानसिकता से आज कुछ लोग विश्व के महानतम विद्वान का अनादर करते हैं ये शर्मनाक है। बाबा साहब नौ भाषाओं (हिन्दी, अंगरेजी, संस्कृत,गुजराती,मराठी,फ्रेंच,जर्मन,पाली तथा पारसी) में पारंगत/मर्मज्ञ थे। उस समय संविधान सभा के सदस्य स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों से ओत-प्रोत थे, वे हमारी तरह बंटे नहीं थे। संविधान में व्यक्ति से व्यक्तित्व और समाज में सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास की आधारशिला को रेखांकित किया गया है। जहाँ विविधता में एकता को यथेष्टता प्रदान करना दुरूह कार्य था। इस महान कार्य के लिए स्वयं डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने संविधान पर अपनी सहमति व्यक्त करते हुए अपने भाषण में अम्बेडकर जी को माननीय कहकर संबोधित किया था।*
   डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी का योगदान सिर्फ़ संविधान शिल्पी के रूप में ही नहीं बल्कि संविधान के माध्यम से उन्होंने छुआ-छूत, जातिवाद के ज़ह्र का समूल विनाश करने का भी प्रयास किया ।  वंचित, शोषित तथा  पिछड़े समाज को न्याय और समानता का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया था।
    ऐसे राष्ट्र की धरोहर पर राजनीति अप्रासंगिक है, गलत है।  उनके जन्मतिथि पर भावप्रवणता के साथ कोटिशः नमन करता हूँ।
    -- रणविजय निषाद
शिक्षक एवम सामाजिक कार्यकर्त्ता
कंन्थुवा, कड़ा-कौशाम्बी(उत्तरप्रदेश)


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